मिथिलांचल में हर साल धूमधाम से मनाया जाता है, "कोजागरा"का विशेष पर्व देखे खबर !!
“कोजागरा"मिथिलांचल का पारंपरिक लोक त्यौहार है और विशेष रूप से नवविवाहितओं के परिवारों द्वारा आश्विन मास की पूर्णिमा यानी की“शरद पूर्णिमा"की रात में धूमधाम से मनाया जाता है। ग्रामीणों के बीच मखाना और पान वितरीत किया जाता हैं और इस अवसर पर कुछ अनुष्ठान भी किए जाते हैं। दिवाली से पहले देवी लक्ष्मी की पूजा करने का यह एक शुभ समय होता है। देवी लक्ष्मी का अवतार शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस दिन माना जाता है कि देवी लक्ष्मी पृथ्वी का चक्कर लगाती है और अपने भक्तों के दुखों और कष्टों का निवारण करती है। वरदान में अच्छा स्वास्थ्य और धन का आशीर्वाद देती हैं।
नवविवाहित इस त्यौहार को ख़ास तौर पर मनाते है।
कोजागरा मिथिलांचल के ब्राह्मण समाज में मुख्य रूप से मनाया जाता है। कोजागरा का त्यौहार नवविवाहित वर-वधू के लिए एक खास महत्व रखता है। इस दिन वर पक्ष के यहां उत्सव और खुशी का माहौल होता है। इस दिन दही,धान,पान,सुपारी,मखाना, चांदी से बने कछुआ,मछली,कौड़ी के साथ वर का पूजन किया जाता है। वर और वधू के बीच चांदी की कौड़ी के साथ एक विशेष “खेल" होता है जिसे“पचीसी" कहा जाता हैं और जीतने वाले के लिए यह पूरा वर्ष शुभ माना जाता है।
सामाजिक एकता का प्रतीक कोजागरा।
कोजागरा के दिन वर यानी कि दूल्हे को पाग पहनाकर तैयार किया जाता है। पाग को सरल शब्दों में टोपी कहा जाता है। मिथिला क्षेत्र में यह पाग सम्मान का प्रतीक माना जाता है और यह पाग विवाह और अन्य खास मौकों पर वर द्वारा पहना जाता है। पाग का कोजागरा के दिन एक विशेष महत्व है क्योंकि “पाग" वर की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। कोजागरा के मौके पर नव विवाहित दूल्हे का चुमावन कर, घर के बड़े बुजुर्ग लोग वर को दही लगाकर, वर के लिए दीघार्यु और खुशहाल वैवाहिक जीवन की विशेष मंगलकामना करते हैं। कोजागरा पूजन के बाद में मखाना,पान,बताशे,और विभिन्न तरह की मिठाईयां अपने परिजनों और गांवों के लोगों के बीच बांटी जाती है।
कोजागरा के दिन घरों की महिलाएं शाम होते ही वधू पक्ष द्वारा “भार" में आए मखाना, फल-फूल, विभिन्न तरह की मिठाईयों को लोगों में बांट कर आनंद उठाती हैं। कोजागरा की रात प्रदोष काल में विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और वधू की “गौरी सन सुहाग"और वर के चिरंजीवी होने की मंगलकामना की जाती है और मां लक्ष्मी को चढ़ा हुआ भोग सगे-संबंधियों के बीच बांटा जाता है।
इस दिन मां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती हैं।
कोजागरा के दिन मैथिली लोकगीत का एक अलग ही वातावरण बन जाता है। घरों की महिलाएं मैथिली लोकगीत गा कर उस वातावरण में सराबोर हो जाती हैं। कोजागरा पर्व सामाजिक प्रेम भाव का प्रतीक है और मिथिलांचल में विवाहित पुरुषों के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कोजागरी पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा की रात्रि में माता लक्ष्मी जब धरती पर विचरण करती हैं तो 'को जाग्रति' शब्द का उच्चारण करती हैं। इसका अर्थ होता है कौन जाग रहा है। वो देखती हैं कि रात्रि में पृथ्वी पर कौन जाग रहा है। जो लोग माता लक्ष्मी की पूरी श्रद्धा से पूजा करते हैं, उनके घर मां लक्ष्मी जरुर जाती हैं।
अनामिका झा
न्यूज़ हेल्पलाइन
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